” मनुख मोल के रखवारी ” बुधराम भैया कतेक बढिया किताब लिखे हावस ग, मन प्रसन्न हो गिस । असल म मैं तोर किताब म ” कल्हण ” के नाव ल देखेंव तव मोर मन म जिज्ञासा होइस कि मैं तोर किताब ल पढवँ । कतका सुघ्घर शब्द मन के प्रयोग करे हावस , मोर छ्त्तीसगढ के किसान हर, काश्मीर के पंडित ” कल्हण ” ल जानथे आउ वोकर किताब ” राजतरंगिणी ” घलाव ल जानथे, एहर बहुत बड बात ए । छ्त्तीसगढ ल तोर ऊपर गर्व हे ग । तोर बर मैं हर अपन किताब ” चंदन कस तोर माटी हे ” के चार लाइन समर्पित करत हौं – ” आम लीम बर पीपर पहिरे छ्त्तीसगढ के सब्बो गॉव । नरवा – नदिया तीर म बैठे छ्त्तीसगढ के सब्बो गॉव ॥ धान कटोरा कहिथें तोला किसम किसम के होथे धान । संझा कन जस गीत ल गाथे छ्त्तीसगढ के सब्बो गॉव ॥
” मनुख मोल के रखवारी ” बुधराम भैया कतेक बढिया किताब लिखे हावस ग, मन प्रसन्न हो गिस । असल म मैं तोर किताब म ” कल्हण ” के नाव ल देखेंव तव मोर मन म जिज्ञासा होइस कि मैं तोर किताब ल पढवँ । कतका सुघ्घर शब्द मन के प्रयोग करे हावस , मोर छ्त्तीसगढ के किसान हर, काश्मीर के पंडित ” कल्हण ” ल जानथे आउ वोकर किताब ” राजतरंगिणी ” घलाव ल जानथे, एहर बहुत बड बात ए । छ्त्तीसगढ ल तोर ऊपर गर्व हे ग । तोर बर मैं हर अपन किताब ” चंदन कस तोर माटी हे ” के चार लाइन समर्पित करत हौं –
” आम लीम बर पीपर पहिरे छ्त्तीसगढ के सब्बो गॉव ।
नरवा – नदिया तीर म बैठे छ्त्तीसगढ के सब्बो गॉव ॥
धान कटोरा कहिथें तोला किसम किसम के होथे धान ।
संझा कन जस गीत ल गाथे छ्त्तीसगढ के सब्बो गॉव ॥